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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

सौतेला : भाग 4 


संपत और गायत्री के मिलन की रैना थी । गायत्री का कमरा फूलों से सजाया गया था । नई मां ने अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी इस रात को यादगार बनाने के लिये । अनीता भी भाभी को देख देखकर फूली नहीं समा रही थी । दौलत की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था और सुमन तो भाभी के पास ही सोने की जिद किए बैठी थी । नई मां ने बड़ी मुश्किल से उसे मनाया और अपने पास सुलाया । 

गायत्री का दिल धक धक कर रहा था । हर दुल्हन का करता है । इस रात की कल्पना करने से ही सिहरन दौड़ जाती थी पूरे शरीर में, वह रात आज सामने थी । पूरा कमरा फूलों की महक से महक रहा था । हल्की हल्की रोशनी हो रही थी कमरे में । गायत्री बड़ा सा घूंघट निकाल कर बैठी थी । अनीता दूध का गिलास रख गई थी । ज्यों ज्यों रात आगे सरक रही थी त्यों त्यों  उसके दिल की धड़कन और तेज हो रही थी । उसे ऐसा लग रहा था कि काश ये वक्त यहीं थम जाये और यह यादगार रात कभी खत्म ही न हो । पर ऐसा होता है क्या ? समय को तो चलना ही होता है । वह अपनी चाल से चल रहा था और गायत्री के दिल को गुदगुदा रहा था । 

आधी रात को दरवाजा सरकने की धीरे से आवाज आई । गायत्री सतर्क हो गई । उसके कांत आ रहे हैं । वह लाज से और झुक गई । बड़ी मुश्किल से अपनी भारी साड़ी को संभाल कर वह पलंग से खड़ी हुई और धीरे से चलकर संपत के सामने आ कर नीचे झुकी । 
"अरे अरे, ये क्या कर रही हो" ? और संपत ने नीचे झुक कर दोनों हाथों से उसे अपने पैर छूने से रोकना चाहा । मगर गायत्री रुकी नहीं और बिना कुछ कहे उसने संपत के पैर छुए और मांग पर लगा दिए । 
"ये सब तुम्हें शोभा नहीं देता है । तुम तो पढी लिखी हो । आजकल इन सब रस्मो रिवाजों का चलन खत्म हो गया है । अब पत्नी का स्थान पति के कदमों में नहीं अपितु उसके हृदय में होता है । तुम तो मेरी जीवन संगिनी हो । मेरी आरजू हो । मेरी हमसफर हो । तुम तो एक सागर हो जिसमें डूबकर मैं पूर्ण तृप्त होना चाहता हूं । तुम मेरी अधूरी जिन्दगी को पूरा करने के लिए आई हो । तुम्हारे बारे में मैं क्या क्या सोचता हूं, तुम क्या जानो । मेरे हर कदम की तुम साझीदार हो, मेरे हर निर्णय की तुम स्वीकृति हो और मेरे हर काम की तुम प्रेरणा हो । अब आगे से कभी मेरे चरण स्पर्श मत करना" । 

गायत्री कुछ नहीं बोली । शायद मायके में हर दुल्हन को यही सिखाया जाता था उन दिनों कि कम से कम बोलना है । गायत्री उस आदेश का पालन कर रही थी । संपत ने गायत्री का हाथ अपने हाथों में थाम लिया । गायत्री का संपूर्ण बदन कंपन्न करने लगा । प्रथम स्पर्श का वर्णन करना बड़ा कठिन काम है । एक पुरूष का स्पर्श जो न पिता है और न भाई । उसके छूने मात्र से दिल में सरगम बजने लगती है । सांसें लुहार की धौंकनी की तरह चलने लगती हैं । पलकें जो आंखों के जाम के नशे से पहले ही भारी थीं, अब और भी भारी होने लगती हैं । इस वजन को सहने की उनकी शक्ति जवाब दे जाती है इसलिए वे मुंदने लगती हैं । होठ लरजने लगते हैं और शरीर छुई-मुई की तरह मुरझाने लगता है । 

संपत गायत्री के बदन की महक में डूब गया । उसने उसे अपने सीने से लगा लिया । गायत्री ने भी कोई विरोध नहीं किया । दोनों इसी तरह आलिंगनबद्ध होकर खड़े रहे । घड़ी की सुइयों की टकटक उनके दिलों की धड़कन से कदमताल कर रही थी । यह मिलन शिव पार्वती और लक्ष्मी नारायण के मिलन की तरह था । पवित्र, प्रथम और प्रेमासिक्त । लब खामोश थे मगर धड़कनें एक दूसरे से बातें कर रही थीं । एक दूसरे के दिल का संदेश दे रही थीं और ले रही थीं । संपत की बांहों की कसावट और बढ रही थी । गायत्री को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह एक पंछी बनकर आसमान में उड़ रही हो । उन्मुक्त गगन में आजाद पंछी की तरह । मिलन इतना सुखद होगा ऐसी कल्पना नहीं की थी उसने । सखियों ने तो उसे डरा ही दिया था । क्या क्या नहीं कहा था उन्होंने ? वो शैतान रमा तो पता नहीं क्या क्या कह रही थी । उसकी शादी हो गई थी इसलिए सब सखियां उससे मिन्नतें कर रही थीं कि वह अपना अनुभव सबको सुनाये । मगर वह इतनी ढीठ निकली कि उसने पहले सबसे वायदा लिया कि वे सब भी अपने अनुभव उसे बताएंगी , तब जाकर उसने अपनी सुहागरात की अनमोल कहानी सुनाई थी । उसके पति को पता नहीं किस बात की जल्दी थी इसलिए वह तो कमरे में आते ही टूट पड़ा था उस पर । बेचारी ने अपने आप को जैसे तैसे मैनेज किया । उसे खूब काटा भी था और खरोंचा भी था । पूरा हैवान लग रहा था उसका पति उस रात । 

रमा का ऐसा अनुभव सुनकर सब सखियां डर गईं थीं और सबने एक स्वर से कह दिया कि वे सब शादी नहीं करेंगीं । मगर तब रमा जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी और कहने लगी "हां यह ठीक है कि इस तरह किसी पुरुष का एकाएक टूट पड़ना कष्टकारी होता है मगर इसके बावजूद इस क्रीड़ा में आनंद भी बहुत आता है । धीरे धीरे उस बुद्धूराम को समझाओ कि खाना हमेशा ठंडा करके खाना चाहिए,  इससे खाने का आनंद भी आता है और मुंह जलने का खतरा भी नहीं रहता है । तब इन मूर्खाधिपतियों को थोड़ी अकल आती है और फिर हर रात रंगीन बन जाती है" । और रमा आंख मार कर खिल खिला कर हंस पड़ी थी । तब जाकर सब सखियों की जान में जान आई थी । 

मगर यहां तो संपत ऐसा कुछ नहीं कर रहे थे । उसे संपत के धीरज और उसकी परिपक्वता पर नाज होने लगा । प्रथम मिलन में लाज संकोच शर्म झिझक सब कुछ तो रहता है । दुल्हन एकदम से कैसे खुल सकती है । वह तो कमल की कली सी बंद रहती है और पति चाहता है कि वह पूर्ण खिले हुए कमल की तरह उसके सामने प्रस्तुत हो, ऐसा कैसे हो सकता है ? लाज का पहरा एकदम से तो नहीं हट सकता है न । सब पतियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए । गायत्री इसीलिए तो सौभाग्य शाली है कि उसे एक समझदार पति मिला था । 

संपत गायत्री को लेकर पलंग पर आ गया और वहां उसे बैठा दिया । अब घूंघट उठने को बेताब हो रहा था । घूंघट भी कह रहा था कि "इतने धीरज की आवश्यकता नहीं है । मैं चांद पर बादल बनकर कब तक बैठा रहूंगा ? अब और ताकत नहीं है मुझमें इस रोशनी को बांधे रखने की" । 

शायद घूंघट की पुकार संपत ने सुन ली थी तभी तो उसने उसे धीरे धीरे उठाना आरंभ कर दिया था । घूंघट उठते ही पूरा कमरा हुस्न की रोशनी से नहा गया था । पूर्णमासी का चांद निकल आया था । संपत की आंखें चौंधिया गई थीं । 

क्रमश : 

श्री हरि 
13.9.22 

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

15-Sep-2022 05:22 PM

बेहतरीन

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Kaushalya Rani

14-Sep-2022 08:51 PM

Very nice

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Priyanka Rani

14-Sep-2022 06:48 PM

Beautiful

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